
भारत का लोकतंत्र अगर किसी एक सिद्धांत पर टिका है, तो वह है: प्रश्न करने की स्वतंत्रता। लेकिन आज एक अजीब लहर चल पड़ी है — सरकार से सवाल पूछना देशद्रोह माना जा रहा है, और सत्ता की हर विफलता का दोष किसी न किसी बाहरी ताकत पर डालकर जनता को भ्रमित किया जा रहा है।
हमने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने पर सरकार का स्वागत किया था। लेकिन फिर? न कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास हुआ, न बाकी राज्यों के लाखों लोगों को वहाँ बसाया गया। इसके विपरीत, सऊदी और यूएई जैसे पाकिस्तानपरस्त देशों को कश्मीर में निवेश के लिए बुलाया गया। और अब, डोमिसाइल कानून लाकर 370 की बहाली पिछले दरवाज़े से कर दी गई।
11 सालों में कश्मीर पर छह लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा खर्च किए गए — वो भी हिंदुओं के टैक्स से। लेकिन आज भी हर रोज़ हिंदू मारे जा रहे हैं। क्या यही सुरक्षा है? क्या यही सुशासन है?
बंगाल में हिंदू मारे जा रहे हैं, और उन्हीं को दोषी बताया जा रहा है। भाजपा के नेता तक ये तर्क दे रहे हैं कि ये सब बांग्लादेशी घुसपैठिए कर रहे हैं — तो फिर आपकी सरकार क्या कर रही है? क्यों नहीं कोई कड़ी कार्यवाही? क्यों नहीं पीड़ितों के साथ खड़े होते?
मणिपुर में गृहयुद्ध जैसी स्थिति है, जबकि वहाँ भाजपा की ही सरकार है। लेकिन इसके लिए भी कभी म्यांमार के तस्करों को, कभी अमेरिकी चर्च को और कभी नशे की खेती को दोषी बताया जाता है।
हर जगह बहाना, हर समस्या पर पर्दा। पाकिस्तान कश्मीर के लिए, बर्मा मणिपुर के लिए, बांग्लादेश बंगाल के लिए — और केंद्र सरकार हमेशा निर्दोष? क्या सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं?
हमने प्रधानमंत्री से बड़े-बड़े वादे सुने थे — “ठोक देंगे, सुधार देंगे, गुंडे खत्म कर देंगे”। पर अब 11 साल बाद, हालात बदतर हैं। हर रोज़ कहीं न कहीं हिन्दू मर रहा है, और सरकार मौन है।
प्रधानमंत्री से सवाल पूछना अपराध नहीं है। ये हमारा संवैधानिक अधिकार है, और एक जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य भी। जो देश की सुरक्षा नहीं कर सकता, जो वादों से पलट जाए, उसे जवाब देना होगा।
कश्मीर, मणिपुर, बंगाल — हर जगह का सच यही कहता है: अब मौन रहना गुनाह है।
सत्ता को समर्थन तब तक ही उचित है, जब तक वह जनहित में काम करे। जब वह जनता से दूर होकर सिर्फ प्रचार और भ्रम फैलाए, तो सवाल पूछना ही सच्चा राष्ट्रधर्म है।
जागो भारतवासियों, क्योंकि अगर तुमने अब भी गर्दन उठाकर सवाल न पूछा, तो एक दिन रेत में सिर्फ तुम्हारा निशान रह जाएगा — तुम नहीं।

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