
पहलगाम की उस दर्दनाक घटना के बाद भी क्या हम सिर्फ़ कड़ी निंदा और “प्रोटोकॉल” से आगे बढ़ पाए हैं?
जब श्रद्धालुओं पर गोलियां चलती हैं, जब जवानों की शहादत पर चुप्पी होती है, तब केवल प्रेस रिलीज़ और बयान नहीं, एक राष्ट्र की प्रतिज्ञा चाहिए।
पाकिस्तान से रिश्तों को लेकर हाल की सरकार की कार्रवाई कुछ इस प्रकार रही:
- पाकिस्तानी मिशन को छोटा किया… मगर बंद नहीं किया।
- सिंधु जल संधि को स्थगित किया… मगर निरस्त नहीं किया।
- सार्क वीज़ा सुविधा रोकी… मगर सभी वीज़ा बंद नहीं हुए।
क्या यह पर्याप्त है? क्या यही है 140 करोड़ देशवासियों की भावना का उत्तर?
“जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध!”
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की इन पंक्तियों की गूंज आज फिर सुनाई देती है।
जब राष्ट्र की सीमाएं लहूलुहान हों, जब आतंक का पनाहगाह खुलेआम बैठा हो — तब तटस्थता भी एक अपराध बन जाती है।
अब समय है — नरम कूटनीति नहीं, राष्ट्रधर्म का।
“शांति की बातें” तब तक खोखली लगती हैं, जब तक आतंक को जड़ से काटने का संकल्प न हो।
राष्ट्र की चेतना जाग चुकी है
आज भारत का युवा पूछ रहा है:
- कब तक हम गाल पर तमाचा खाकर दूसरा गाल बढ़ाते रहेंगे?
- कब तक दया दिखाकर अपने शहीदों का अपमान करेंगे?
- कब तक दुश्मन देश के नागरिकों को अपने देश में वीज़ा की रियायतें देंगे?
सरकार सुन रही है… पर क्या समझ रही है?
जनता का आक्रोश मौन नहीं है।
इस बार सिर्फ़ जवाब नहीं चाहिए,
इस बार हिसाब चाहिए।

भारत माता की जय! 🇮🇳
वन्दे मातरम्।





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