May 4, 2025

🔥 No More Silence! 🔥

A Call to Conscience in the Time of Cowardice

In the reign of silence, blood now flows,

And temples grieve where conches rose.

Where once chants rang in daily prayer,

Now echoes burst from bombs in air.

A Hindu dies — yet silence speaks.

A mother weeps — yet rest she seeks not.

The rulers mute, the system blind,

Even martyrdom goes unrecognized.

Is this why our brave once fought?

To live in fear in the land they brought?

Is this why we choose our state?

To bleed unchecked, and call it fate?

Who let Kashmir blaze unchecked?

Who let our soldiers lie disrespected?

Who stays silent as innocents fall?

Protector, or the cause of it all?

How long this mute tolerance shall last?

How long this cowardice shall be cast?

The time is now — ignite the flame,

O sons of Bharat, rise again in name!

🔥 “अब और नहीं!” 🔥

कायर के राज में ये कैसा अंधेरा,
हर रोज़ बुझता है आशा का सवेरा।
हिन्दू ही अपने घर में डरता है,
धर्म भूमि पर रक्त बहता है गहरा।

कब तक यूँ आँसू बहते रहेंगे?
कब तक शहीद बेटे जलते रहेंगे?
जागो अब ओ वीरों की धरती,
वरना इतिहास तुम्हें माफ़ न करेगा।

कायर के राज में रक्त बहा,
फिर मंदिरों में मातम छा गया।
जहाँ शंख बजते थे हर रोज़,
वहाँ अब बारूद बरस गया।

हिन्दू मरा — कोई प्रश्न नहीं,
माँ रोई — पर अवकाश नहीं।
शासन गूंगा, सत्ता अंधी,
वीरगति को भी अब सम्मान नहीं।

क्या इसलिए लड़े थे वीर?
कि अपने ही घर में हों हम अधीर?
क्या इसलिए बनती है सरकार?
कि खून हो जाए, और हो ना वार?

जिसने कश्मीर को सुलगने दिया,
जिसने पुंछ में शवों को तड़पने दिया,
जो चुप है आज उन मासूमों पर,
क्या कहें उसे? रक्षक या पीड़ा का कारण?

कब तक ये मौन, ये सहिष्णुता?
कब तक ये कायरों की राजनीति?
अब वक़्त है — ज्वाला बनो,
भारतवासी! फिर से रणधीर बनो।

– Prafulkr

“कहाँ गया वह सिंह-सदृश स्वाभिमान?”

कायर के राज में ये कैसा अंधेरा,

हर रोज़ बुझता है आशा का सवेरा।

हिन्दू ही अपने घर में डरता है,

धर्म भूमि पर रक्त बहता है गहरा।

कब तक यूँ आँसू बहते रहेंगे?

कब तक शहीद बेटे जलते रहेंगे?

जागो अब ओ वीरों की धरती,

वरना इतिहास तुम्हें माफ़ न करेगा।

कायर Narendra Modi के राज में हिन्दू हर जगह हर रोज़ मर रहे

हर जगह बहाना, हर समस्या पर पर्दा। पाकिस्तान कश्मीर के लिए, बर्मा मणिपुर के लिए, बांग्लादेश बंगाल के लिए — और केंद्र सरकार हमेशा निर्दोष? क्या सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं?

हमने प्रधानमंत्री से बड़े-बड़े वादे सुने थे — “ठोक देंगे, सुधार देंगे, गुंडे खत्म कर देंगे”। पर अब 11 साल बाद, हालात बदतर हैं। हर रोज़ कहीं न कहीं हिन्दू मर रहा है, और सरकार मौन है।
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता को समकालीन संदर्भ में जोड़ना एक सशक्त माध्यम है — खासकर जब आज का भारत फिर से अपने नायकों को पुकार रहा है, और जनता अपने “अर्जुन” व “भीम” की वापसी चाहती है। उनकी पंक्तियाँ:

“रे, रोक युधिष्ठिर को न यहाँ,

जाने दे उनको स्वर्ग धीर।

पर, फिर हमें गाण्डीव-गदा,

लौटा दे अर्जुन-भीम वीर।।”


इसका आशय है —

“जो संयम और नैतिकता का प्रतीक है (युधिष्ठिर), उसे तुम स्वर्ग जाने दो, लेकिन फिर हमें वो रणधीर चाहिए जो अन्याय को ध्वस्त कर दे — अर्जुन और भीम चाहिए, जिनके हाथों में गाण्डीव और गदा हो।”

इस संदर्भ में, कई लोग आज यह महसूस कर रहे हैं कि नेतृत्व में साहस, न्यायप्रियता और निर्णायकता की कमी है — और ऐसे में दिनकर जी की यह ओजपूर्ण वाणी एक चेतावनी और प्रेरणा दोनों बनकर उभरती है।

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